तितुस के नाम पत्र
अध्याय: 1 • 2 • 3 • पवित्र बाईबल
अध्याय 2
1 तुम ऐसी शिक्षा दो, जो सही धर्म-सिद्धान्त के अनुकूल हो।
2 वृद्धों को समझाओं कि उन्हें संयमी, गम्भीर एवं समझदार होना चाहिए और विश्वास, भ्रातृप्रेम एवं धैर्य में परिपक्व।
3 इसी प्रकार वृद्धाओं का आचरण प्रभु-भक्तों के अनुरूप हो। वे किसी की झूठी निन्दा न करें और न मदिरा की व्यसनी हों। वे अपने सदाचरण द्वारा,
4 तरूण स्त्रियों को ऐसी शिक्षा दें कि वे अपने पति और अपने बच्चों को प्यार करें,
5 समझदार, शुद्ध और सुशील हों, अपने घर का अच्छा प्रबन्ध करें और अपने पति के अधीन रहें, जिससे लोग सुसमाचार की निन्दा न कर सकें।
6 नवयुवकों को समझाओ कि वे सब बातों में संयम से रहें,
7 और तुम स्वयं उन्हें अच्छा उदाहरण दो। तुम्हारी शिक्षा प्रामाणिक और गम्भीर हो।
8 तुम्हारे उपदेश हितकर और अनिद्य हों। इस प्रकार विरोधी किसी भी बात के विषय में हमारी निन्दा न कर सकने के कारण लज्जित होगा।
9 दासों को समझाओ कि वे सब बातों में अपने स्वामियों के अधीन रहें, आपत्ति किये बिना उनकी आज्ञाएं मानें
10 और चोरी नहीं करें, बल्कि पूर्ण रूप से ईमानदार बने रहें। यह सब करने से वे हमारे मुक्तिदाता ईश्वर की शिक्षा की प्रतिष्ठा बढ़ायेंगे।
11 क्योंकि ईश्वर की कृपा सभी मनुष्यों की मुक्ति के लिए प्रकट हो गयी है।
12 वह हमें यह शिक्षा देती है कि अधार्मिकता तथा विषयवासना त्याग कर हम इस पृथ्वी पर संयम, न्याय तथा भक्ति का जीवन बितायें
13 और उस दिन की प्रतीक्षा करें, जब हमारी आशाएं पूरी हो जायेंगी और हमारे महान् ईश्वर एवं मुक्तिदाता ईसा मसीह की महिमा प्रकट होगी।
14 उन्होंने हमारे लिए अपने को बलि चढ़ाया, जिससे वह हमें हर प्रकार की बुराई से मुक्त करें और हमें एक ऐसी प्रजा बनायें जो शुद्ध हो, जो उनकी अपनी हो और जो भलाई करने के लिए उत्सुक हो।
15 तुम इन बातों की शिक्षा देते हुए उपदेश दिया करो और अधिकारपूर्वक लोगों को समझाओ। कोई तुम्हारा तिरस्कार नहीं करे।